हे मानव जाति , भले ही मैं हूँ जानवरों कि प्रजाति ,
पर मानवता , मैं मानवों से ज़्यादा हूँ निभाती ,
मनुष्यों के बीच बहुत अधिक हैँ मेरी ख्याति ,
इसी लिये तो गर्व से फूली है मेरी छाती !
मत भूलो आपके स्वास्थ लिये लाभदायक है मेरा हर पदार्थ ,
दूध , गौमूत्र , गोबर के व्यवसाय से पूरा किया आपने अपना स्वार्थ !
मेरी योनी में बसे है तैंतीस करोड़ देवी देवता समझ तो होगी थोड़ी ,
लेकिन मेरी चमड़ी तक को व्यवसाय बनाने मे कोई कसर नहीं छोड़ी !
दूध देना बंद करने के बाद भी “माँ ” कहलाती है हर एक नारी ,
दूध देना बंद करने के बाद” मै “क्यों जाती हूँ मारी ,
मत भूलों मेरी सेवा से मिली है आपको तन मन धन की साँकल ,
विनती है , मत छीनो एक बूढ़ी माँ से उसके प्राण, एक बछडे़ से उसका आँचल !